संपादकीय: ब्रिक्स का मंच (जनसत्ता)
चीन के जियामेन शहर में ब्रिक्स (ब्राजील-रूस-भारत-चीन-दक्षिण अफ्रीका) के नौवें सम्मेलन में सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विकास की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए संगठन के देशों के बीच मजबूत भागीदारी जरूरी है। 
इससे पहले, ब्रिक्स के साझा घोषणापत्र में पहली बार लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने और ऐसे संगठनों को शह देने वाले देशों पर शिकंजा कसने का आह्वान किया गया। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत माना जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन में सौर ऊर्जा, कौशल, स्वास्थ्य, आधारभूत संरचना, निर्माण और संपर्क के क्षेत्र में ज्यादा ध्यान देने की वकालत की। साथ ही यह कहा कि पूरी दुनिया में मूडीज, फिच और स्टैंडर्ड एंड पूअर्स नामक रेटिंग एजेंसियों का दबदबा है। इसके बरक्स ब्रिक्स देशों को अपनी नई रेटिंग एजेंसी बनानी चाहिए। गौरतलब है कि पूरी दुनिया में निन्यानबे प्रतिशत रेटिंग यही तीन एजेंसियां करती हैं। प्रधानमंत्री ने अगर नई ब्रिक्स क्रेडिट रेटिंग एजेंसी की जरूरत जताई है तो यह स्वाभाविक है। यह समय की मांग भी है।
जो रेटिंग एजेंसियां अभी प्रभावी हैं वे अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रभुत्व को मानती हैं और इसमें कोई दो राय नहीं कि कई बार वे कुछ देशों की रेटिंग ठीक से न करती हों। उनकी कार्यप्रणाली पहले भी संदिग्ध रही है और उन पर उंगलियां उठती रही हैं। इसलिए ब्रिक्स जैसे ताकतवर मंच से इस विषय पर बात करने से जाहिर है पूरी दुनिया का ध्यान इस ओर जाएगा। 
  • प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि पश्चिमी रेटिंग एजेंसियों का मुकाबला करने तथा विकासशील देशों की सरकारी व कॉरपोरेट इकाइयों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए नई रेटिंग एजेंसी जरूरी है। 
  • इसके अलावा भारत की ओर से सम्मेलन में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बढ़-चढ़ कर काम करने का आह्वान किया गया। प्रधानमंत्री मोदी पहले भी इस विषय को उठाते रहे हैं और उन्हीं का यह कमाल रहा है कि इस मुद्दे पर लोगों का ध्यान गया। भारत वास्तव में सौर ऊर्जा के मामले में काफी संपन्न है। यहां तक कि प्रधानमंत्री ने सौर ऊर्जा से संपन्न देशों को सूर्य-पुत्र तक की संज्ञा दी थी। इस क्षेत्र में अगर बेहतर तकनीक और प्रौद्योगिकी का विकास किया जाए तो कोई दो राय नहीं कि यह वैकिल्पक ऊर्जा के रूप में तमाम जरूरतों को पूरा कर सकता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ब्रिक्स के देशों में पूरक कौशल और क्षमता है जो अक्षय और सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दे सकते हैं और न्यू डेवलपमेंट बैंक को चाहिए कि इसके लिए वित्तीय सहायता भी जुटाए। अगर यह बैंक इसके लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है तो ऊर्जा के क्षेत्र में एक नई क्रांति आने में देर नहीं लगेगी। असल में इस समय पूरी दुनिया में ऊर्जा के सवाल को लेकर चिंता देखी जा रही है। कोयला, बिजली और परमाणु ऊर्जा से आगे बढ़कर अब सौर ऊर्जा के बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने केंद्रीय बैंकों को अपनी क्षमता बढ़ाने पर भी जोर दिया और कहा कि आकस्मिक मुद्रा कोष व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के बीच सहयोग बढ़ाना होगा। साथ ही, डिजिटल अर्थव्यवस्था को ब्रिक्स देशों को अपनाने की जरूरत है। इससे न सिर्फ पारदर्शिता आएगी, बल्कि कई तरह की अनियमितताओं पर भी अंकुश लगेगा।
Article has been adopted from Jansatta.com, with full credit
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