भोपाल: 26 साल की नर्सिंग ऑफिसर ने कटारा हिल्स में की आत्महत्या, सुसाइड नोट में लिखा- 'तनाव में हूँ'
भोपाल, 25 मार्च 2025
भोपाल के कटारा हिल्स इलाके में एक दुखद घटना ने सभी को स्तब्ध कर दिया है। यहाँ स्प्रिंग वैली में किराए के अपार्टमेंट में रहने वाली 26 साल की नर्सिंग ऑफिसर दीपिका साहू ने शनिवार सुबह कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। दीपिका, जो एम्स भोपाल के कैंसर विभाग में कार्यरत थीं, अपने बेडरूम में छत के पंखे से लटकी पाई गईं। पुलिस को मौके से एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें उन्होंने लिखा था कि वह तनाव में थीं, लेकिन किसी को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया। यह घटना मानसिक स्वास्थ्य के प्रति हमारी लापरवाही पर एक गंभीर सवाल उठाती है।
क्या हुआ उस सुबह?
कटारा हिल्स पुलिस के अनुसार, दीपिका साहू मूल रूप से झाँसी की रहने वाली थीं और स्प्रिंग वैली की पाँचवीं मंजिल पर अकेले रहती थीं। शनिवार सुबह उनके फोन का जवाब न मिलने पर पड़ोसियों को शक हुआ। चिंतित निवासियों ने बिल्डिंग कमेटी को सूचना दी, जिसके बाद फ्लैट के मालिक को बुलाया गया। दरवाजा तोड़कर अंदर जाने पर दीपिका का शव पंखे से लटकता मिला। पुलिस ने सुसाइड नोट को जब्त कर लिया है और मामले की जाँच शुरू कर दी है। उनके परिवार के झाँसी से भोपाल पहुँचने के बाद रविवार को पोस्टमॉर्टम किया जाएगा।
एक अनसुनी चीख
दीपिका का सुसाइड नोट भले ही किसी को दोषी न ठहराता हो, लेकिन यह साफ करता है कि वह अंदर ही अंदर किसी बड़े तनाव से गुजर रही थीं। एम्स भोपाल में कैंसर मरीजों की देखभाल करने वाली यह युवा नर्सिंग ऑफिसर रोजाना जिंदगी और मौत के बीच की जंग देखती थीं। क्या यह तनाव उनके काम से जुड़ा था? या फिर निजी जिंदगी में कुछ ऐसा था, जिसे उन्होंने किसी से साझा नहीं किया? यह सवाल अब अनुत्तरित रह गए हैं।
समाज और सिस्टम से सवाल
यह घटना एक बार फिर स्वास्थ्यकर्मियों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत को रेखांकित करती है। जो लोग दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं, क्या उनकी अपनी जिंदगी की परवाह हम करते हैं? विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे काम के घंटे, भावनात्मक दबाव और सहायता की कमी अक्सर स्वास्थ्यकर्मियों को अवसाद की ओर धकेल देती है। क्या यह वक्त नहीं कि हम अपने सिस्टम में बदलाव लाएँ और हर स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें?
आगे क्या?
पुलिस इस मामले की गहराई से जाँच कर रही है। दीपिका के सहकर्मियों और दोस्तों से बातचीत के जरिए यह समझने की कोशिश की जा रही है कि आखिर वह किस दौर से गुजर रही थीं। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या हम इस त्रासदी से कुछ सीखेंगे? एक सवाल जो हर किसी के मन में गूँज रहा है—अगर कोई एक कदम आगे बढ़कर उनकी बात सुन लेता, तो शायद यह नौबत न आती।
मानसिक स्वास्थ्य कोई कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर आप या आपके आसपास कोई परेशान है, तो आज ही बात करें—शायद आप एक जिंदगी बचा लें।
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प्रकाशित: 25 मार्च 2025, दोपहर 2:08 बजे IST