चीन का सहयोग ले या प्रतिस्पर्धी माने, असमंजस में है अमेरिका (न्यूयॉर्क टाइम्स एडिटोरियल बोर्ड)(©The New York Times )
अमेरिकी प्रशासन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के लिए कभी सबसे विश्वासपात्र रहे स्टीव बेनन को अच्छा नीति विशेषज्ञ माना जाता है। उन्होंने एक बार हॉन्ग कॉन्ग की यात्रा की थी और उसके बाद ही कह दिया था कि चीन के साथ अमेरिका को 'इकोनॉमिक वॉर' का दृष्टिकोण लेकर चलना पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि वह जिस नीति से दुनिया में अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए चाल चल रहा है, इससे अमेरिका को सतर्क रहना होगा। उसके बाद एक इन्वेस्टर कॉन्फ्रेंस में उन्होंने चीन को लेकर नरम रुख अपनाते हुए उसके नेतृत्व की प्रशंसा की थी। साथ ही कहा था कि दोनों देशों को 'ट्रेड वॉर' का नजरिया छोड़ देना चाहिए।



  • बेनन की बातों का जो भी मतलब हो, लेकिन वे ट्रम्प प्रशासन की दुविधा की बातें करते थे। दुविधा यह कि चीन को चुनौती दी जाए या फिर उसका सहयोग लिया जाए। उनका कहना था कि चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था 'वर्किंग एंड मिडिल क्लास' पर खर्च करके बढ़ाई है। उन्हीं की बातों का एक इशारा यह था कि अगर अमेरिका चीन को चुनौती देता है, तो उत्तर कोरिया को रोक पाना मुश्किल हो जाएगा। ऐसी स्थिति में अमेरिका के लिए जरूरी है कि वह उत्तर कोरिया पर लगाम कसने के लिए चीन के साथ सहयोग बनाए रखे। एक अन्य प्रमुख मुद्दा दक्षिण चीन सागर का है, जो अंतरराष्ट्रीय समुद्री परिवहन मार्क है और वहां चीन लगातार अतिक्रमण करके अपना प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिशें कर रहा है।

  • दोनों देशों की आबादी 170 करोड़ है। उनकी अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे अधिक है। दोनों देशों के पास परमाणु हथियार और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर है। दोनों की महत्वाकांक्षा दुनिया को अपनी तरह का आकार देने की है। दोनों देश साथ मिलकर दुनिया में शांति का वातावरण स्थापित कर सकते हैं। अगर वे एक-दूसरे के विरोधी बने रहे तो कई चीजों में गड़बड़ कर सकते हैं।
  • संभव है कि अमेरिकी राष्ट्रपति यह सब समझते होंगे, क्योंकि उन्होंने ही अपने निजी रिसॉर्ट में चीनी राष्ट्रपति का भव्य स्वागत किया था। बाद में कई बार उनसे फोन पर भी चर्चा की। लेकिन, ट्रेड, टैरिफ और उत्तर कोरिया जैसे मसलों पर कूटनीति के मामले में वे कहीं-कहीं पिछड़े नजर आते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि व्हाइट हाउस और विदेश मंत्रालय में 'चीनी विशेषज्ञ' की नियुक्ति करने में प्रशासन बहुत धीमा है, जबकि बेनन वह व्यक्ति थे जिनकी चीन में बहुत रुचि थी। अभी ऐसा कोई वरिष्ठ अधिकारी नहीं है, जो चीन पर राष्ट्रपति को बेहतर सलाह दे सके और उसमें अमेरिकी नेतृत्व की छवि दिखाई दे। बराक ओबामा ने एशिया में अमेरिका का प्रभुत्व बढ़ाया था, जबकि ट्रम्प ने सब बिगाड़ दिया। उल्टा उन्होंने चीन को आगे पैर पसारने के अवसर दे दिए। अब अपने व्यापार नियम खुद बना रहा है। अब जब अमेरिका और चीन के राष्ट्रपति संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच पर फिर से मिलने वाले हैं, तो देखना होगा कि अमेरिकी नेतृत्व देश दुनिया के हित में क्या कर पाता है।

(न्यूयॉर्क टाइम्स एडिटोरियल बोर्ड)
(©The New York Times )
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