ईरान परमाणु समझौता आखिर है क्या?
अमेरिका ने खुद को ईरान
के साथ हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते से अलग कर लिया है. ईरान परमाणु समझौते को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तौर पर
देखा जा रहा है जिससे दुनिया की सभी बड़ी ताकतों की विदेश नीति इन सालों में
प्रभावित होती रही है.
आखिर क्या है यह समझौता और
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतना महत्वपूर्ण क्यूँ है?
अमेरिका और ईरान के रिश्तों का इतिहास
> ईरान के लोकप्रिय
प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेक की सरकार का तख्तापलट
> इसके बाद 25 साल तक सत्ता पहलवी के हाथ में (इस
दौरान ईरान अमेरिका के मधुर रिश्ते रहें)
कारण: ईरान को तेल से
होने वाली अकूत आमदनी का करीब आधा हिस्सा अमेरिकी और ब्रिटिश कंपनियों के एक
कंसोर्टियम को मिलने लगा
> 1979 में क्रांति के
जरिये शाह और अमेरिका के गठजोड़ का अंत.
> दोनों देशों के बीच
का अविश्वास गहराता चला गया.
> अमेरिका से दुश्मनी
मोल लेने के कारण ईरान व्यापार के मोर्चे पर बाकी दुनिया से कटता गया.
> फिर 2002 में ईरान के अघोषित परमाणु केंद्रों के खुलासे की खबरें आईं. (ईरान में सरकार
विरोधी एक विपक्षी गुट ने यह जानकारी उजागर की )
> अंतरराष्ट्रीय
परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने कहा की ईरान एक गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम
शुरू करने की तैयारी कर रहा है जिसका उद्देश्य मिसाइलों के लिए परमाणु हथियार
बनाकर उनका परीक्षण करना है.
> इसके बाद अमेरिका सहित
अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए.
> व्यापारिक मोर्चे पर
ईरान की कमर टूट गई.
इसके बाद पी5+1 कही जाने वाली छह शक्तियों (अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस और चीन) के साथ उसकी
बातचीत का लंबा दौर शुरू हुआ जिसकी अंत जुलाई 2015 में वियना समझौते (ईरान
परमाणु समझौते) के साथ हुआ.
परमाणु समझौते की प्रमुख शर्तें
> इस परमाणु समझौते के
तहत ईरान ने अपने करीब नौ टन अल्प संवर्धित यूरेनियम भंडार को कम करके 300 किलोग्राम तक करने की शर्त स्वीकार की.
> ईरान अपना अल्प
संवर्धित यूरेनियम रूस को देगा और सेंट्रीफ्यूजों की संख्या घटाएगा.
> इसके बदले में रूस
ईरान को करीब 140 टन प्राकृतिक यूरेनियम येलो-केक के रूप में
देगा.
> संधि की शर्त यह भी
थी कि आईएईए को अगले 10 से 25 साल तक इस बात की जांच
करने की स्वतंत्रता होगी कि ईरान संधि के प्रावधानों का पालन कर रहा है या नहीं.
इन सारी शर्तों के बदले
में पश्चिमी देश ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध हटाने पर सहमत हुए थे.
अमेरिका के समझौते से अलग होने का कारण
> अमेरिका का मानना है
कि ईरान अभी भी उसे मिल रही परमाणु सामग्री का इस्तेमाल हथियार बनाने के लिए कर
रहा है.
> ईरान परमाणु समझौता बेहद
उदार हैं. यह समझौता ईरान को तय सीमा से कहीं अधिक हैवी वॉटर (परमाणु रिएक्टरों के
संचालन में इसका इस्तेमाल होता है) प्राप्त करने और अंतरराष्ट्रीय जांचकर्ताओं को
जांच के मामले में सीमित अधिकार देता है.
> अमेरिका का मानना है
कि इस समझौते के बाद भी ईरान गैर परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल का निर्माण कर रहा है. साथ
ही वह सीरिया, यमन और इराक में शिया लड़ाकों और हिजबुल्लाह
जैसे संगठनों को लगातार हथियार सप्लाई कर रहा है.