आईआईएससी शोधकर्ताओं ने पीने के पानी को सुरक्षित बनाने के लिए कॉपर-लेपित झिल्ली का विकास किया

बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) में शोधकर्ताओं की एक टीम ने पीने के पानी को सुरक्षित बनाने के लिए तांबे (कॉपर) के आयनों के साथ एक जल निस्पंदन (वॉटर-फिल्टर) करने वाली झिल्ली को विकसित किया है। टीम का नेतृत्व डिपार्टमेंट ऑफ़ मैटेरियल इंजीनियरिंग, आईआईएससी से प्रोफेसर सूर्यासारथी बोस ने किया था और इस अध्ययन के परिणाम नैनोस्केल नामक पत्रिका में प्रकशित किये गए।शोधकर्ताओं ने बायोफ़ाउलिंग को रोकने और जीवाणुओं को मारने के लिए आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले पॉलीविनाइलीडिन फ्लोराइड (पीवीडीएफ) को जल निस्पंदन झिल्ली के रूप में विकसित कर दिया।
प्रक्रिया:


ऐसा करने के लिए शोधकर्ताओं ने पहले एक बहुलक (स्टायरीन मैलिक एनहाइड्राइड या एसएमए) के साथ सम्मिश्रण करके निष्क्रिय पीवीडीएफ झिल्ली को कार्यात्मक बनाया।इसके बाद शोधकर्ताओं ने कॉपर आयनों की नियंत्रित रिलीज़ के लिए एक जैव-संगत पॉलीमर (पॉलीफोस्फॉस्टर या पीपीई) को कॉपर ऑक्साइड के साथ लेपित किया ताकि यह 1.3 पीपीएम का उल्लंघन न करे और विषाक्त न हो।अंत में झिल्ली की कोटिंग के लिए उन्होंने बहुलक के साथ लेपित कॉपर ऑक्साइड की छिद्रपूर्ण जेल की तरह की संरचना का इस्तेमाल किया। 
कॉपर की कोटिंग के लिए इस्तेमाल किया गया बहुलक एंटी-फॉउलिंग गुण प्रदर्शित करता है।झिल्ली पर लेपित एसएमए पॉलिमर, जो पानी के संपर्क में आंशिक रूप से हाइड्रोलाइज्ड हो जाता है, जीवाणुओं की बाहरी सतह के संपर्क में आकर डिस्क आकार के ढांचे का निर्माण करता है। बैक्टीरिया से जारी यह एंजाइम कॉपर ऑक्साइड पर पायी जाने वाली बहुलक कोटिंग को साफ करता है जिसके परिणामस्वरूप पानी में झिल्ली से कॉपर के आयनों की नियंत्रित रिलीज़ की जाती है।जब बैक्टीरिया की बहुत उच्च एकाग्रता वाले पानी का उपयोग किया गया था, तो चार घंटे के बाद में पानी में कॉपर आयनों की मात्रा 1.6 पीपीएम थी, जो कि डब्ल्यूएचओ सीमा से अधिक है। उच्च एकाग्रता में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को मारने के लिए कॉपर आयनों की क्षमता चार घंटे के अंत में चार आयामों के उच्चतम स्तर पर थी।
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